बलरामपुर जिले के मानव तस्कर हो जाओ सावधान नही तो पुरी जिन्दगी बितानी पड़ सकती है जेल में जानें नियम कानून।

0
274

छत्तीसगढ़ सरगुजा संभाग बलरामपुर जिले से मामला निकाल कर आ रहा है आज मानव तस्करी को लेकर बलरामपुर पुलिस अधीक्षक को लिखित आवेदन देकर शिकायत की गई है। जब हमने मानव तस्करी को लेकर बात किए तो एसपी बलरामपुर के द्वारा बताया गया कि तस्करी करने वाले पर जांच के पश्चात ऐसे अपराधियों पर FIR कर जल्द ही उनके गिरफ्त में होंगे।

भारत में मानव तस्करी मुख्यतया भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत एक अपराध है। संहिता कहती है कि तस्करी का अर्थ है, बलपूर्वक तरीकों से, शोषण के लिए (i) किसी व्यक्ति की भर्ती, (ii) उसका परिवहन, (iii) उसे रखना, (iv) उसे ट्रांसफर करना, या (v) उसकी प्राप्ति। इसके अतिरिक्त ऐसे कानून भी हैं जो विशिष्ट कारणों से की गई तस्करी को रेगुलेट करते हैं। उदाहरण के लिए यौन उत्पीड़न के लिए मानव तस्करी के संबंध में अनैतिक तस्करी (निवारण) एक्ट, 1986 है। इसी प्रकार बंधुआ मजदूरी रेगुलेशन एक्ट, 1986 और बाल श्रम रेगुलेशन एक्ट, 1986 बंधुआ मजदूरी के लिए शोषण से संबंधित हैं। इनमें से प्रत्येक कानून स्वतंत्र तरीके से काम करता है, उनकी अपनी प्रवर्तन प्रणाली है और ये कानून मानव तस्करी से संबंधित अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करते हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार, भारत में 2016 में भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत मानव तस्करी के कुल 8,132 मामले दर्ज किए गए थे।[1]  पिछले वर्ष की तुलना में इसमें 15% की वृद्धि थी। उसी वर्ष (2016) तस्करी के शिकार 23,117 लोगों को छुड़ाया गया था। इनमें से बलात श्रम के लिए तस्करी का शिकार हुए व्यक्तियों को सबसे अधिक संख्या में छुड़ाया गया था (45.5%)। इसके बाद वेश्यावृत्ति का स्थान था (21.5%)। तालिका 1 में विभिन्न कारणों से तस्करी का शिकार हुए लोगों का विवरण है (2016 का)।

2011 में भारत ने यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम्स, 2000 और मानव तस्करी के निवारण, उसके शमन और दंड से संबंधित प्रोटोकॉल को मंजूरी दी थी।[2]  2015 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद महिला एवं बाल विकास मंत्री ने एक कमिटी का गठन किया ताकि मानव तस्करी पर व्यापक कानून बनाने की व्यावहारिकता की जांच की जा सके।[3]

18 जुलाई, 2018 को महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) बिल, 2018 को लोकसभा में पेश किया। 26 जुलाई, 2018 को बिल एक सदन में पारित हो गया। बिल तस्करी के शिकार लोगों के बचाव, उन्हें छुड़ाने और उनके पुनर्वास का प्रावधान करता है। 

तालिका 2 : बिल के अंतर्गत विभिन्न अपराधों की सजा

अपराध सजा प्रत्यक्ष अपराध तस्करी

एक व्यक्ति की तस्करी: 7-10 वर्ष का कारावास और जुर्माना;

एक से अधिक व्यक्तियों की तस्करी:  10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास, और जुर्माना;

नाबालिग की तस्करी:  10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास, और जुर्माना;

एक से अधिक नाबालिग व्यक्ति की तस्करी:  आजीवन कारावास, और जुर्माना;

तस्करी में शामिल लोकसेवक या सरकारी अधिकारी:  आजीवन कारावास, और जुर्माना। 

तस्करी के गंभीर प्रकार

10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास, और कम से कम 1,00,000 रुपए का जुर्माना।

बार-बार गंभीर अपराधों करने वाला तस्कर

आजीवन कारावास, और कम से कम 2,00,000 रुपए का जुर्माना।

लोगों की खरीद-फरोख्त

7-10 वर्ष का कारावास और कम से कम 1,00,000 लाख रुपए का जुर्माना।

मीडिया की सहायता से तस्करी

7-10 वर्ष का कारावास और कम से कम 1,00,000 लाख रुपए का जुर्माना।

संबंधित अपराध

तस्करी से जुड़े परिसर का प्रबंधक

पहली बार दोष सिद्ध होने पर: 5 वर्ष तक का कारावास और 1,00,000 रुपए तक का जुर्माना; अगली बार दोष सिद्ध होने पर: कम से कम 7 वर्ष का कारावास और 2,00,000 रुपए तक का जुर्माना।

तस्करी से जुड़े परिसर का मालिक/कब्जाधारी

पहली बार दोष सिद्ध होने पर: 3 वर्ष तक का कारावास और 1,00,000 रुपए तक का जुर्माना; अगली बार दोष सिद्ध होने पर: कम से कम 5 वर्ष का कारावास और 2,00,000 रुपए तक का जुर्माना।

अश्लील सामग्री का प्रकाशन या वितरण जिससे तस्करी की आशंका हो सकती है

5-10 वर्ष का कारावास और 50,000-1,00,000 रुपए तक का जुर्माना।

अथॉरिटी द्वारा कर्तव्य न निभाना

पहली बार दोष सिद्ध होने पर: कम से कम 50,000 रुपए का जुर्माना;  अगली बार दोष सिद्ध होने पर: एक वर्ष तक का कारावास और कम से कम 1,00,000 रुपए का जुर्माना।