शा. महा. सिलफिली में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद को किये याद।

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सूरजपुर:–शासकीय महाविद्यालय सिलफिली में महान साहित्यकार प्रेमचंद की स्मृति में प्रेमचंद स्मरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ प्राचार्य डॉ. रामकुमार मिश्र तथा वरिष्ठ प्राध्यापक श्री बृज किशोर त्रिपाठी के साथ-साथ अन्य प्राध्यापकों के द्वारा माँ सरस्वती के छायाचित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्ज्वलन के द्वारा हुआ।

कार्यक्रम के संचालक सहायक प्राध्यापक अजय कुमार तिवारी ने प्रेमचंद का सामान्य परिचय देते हुए उनके जन्म, जीवन तथा उनके साहित्य की चर्चा की। उन्होंने बताया कि प्रेमचंद महान साहित्यकार थे। प्रेमचंद ने सर्वप्रथम कहानी विधा को यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत किया। उससे पूर्व कहानी जादू, टोने, तिलस्मी, ऐयारी इत्यादि से संबंधित लिखी जाती थी, जो सिर्फ मनोरंजन के लिए हुआ करता थी। प्रेमचंद ने समाज के हर तरह के व्यक्ति को अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में स्थान दिया। उन्होंने 300 से अधिक कहानियों, 15 उपन्यासों के अतिरिक्त समाज तथा राजनीति से जुड़े अनेक विषयों पर लेख लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। प्रेमचंद ने सबसे पहले समाज के जीवन को, समाज की वास्तविक विसंगतियों रंगभेद, छुआछूत, बाल विवाह, सूदखोरी-महाजनी प्रथा से उत्पन्न समस्या को स्थान देते हुए समाज के सभी वर्गों के व्यक्तियों को अपनी कहानियों तथा उपन्यासों का पात्र बनाया। उन्होंने समाज की वास्तविक स्थिति को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया। इसके पश्चात प्रेमचंद के जीवन पर आधारित राज्यसभा टीवी द्वारा निर्मित एक डॉक्यूमेंट्री प्रोजेक्टर के द्वारा प्रस्तुत किया गया। जिससे विद्यार्थियों को प्रेमचंद के जीवन तथा उनके कृतित्व की जानकारी मिली तथा उन्होंने प्रेमचंद के निवास स्थल जो अब शासकीय संग्रहालय बन चुका है, को भी दिखाया गया।
मुख्य वक्ता तथा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राम कुमार मिश्र ने बताया कि प्रेमचंद ने अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का उपयोग किया। उन्होंने कहानी उपन्यास लेखन के अतिरिक्त पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। प्रेमचंद को देखकर उनके व्यक्तित्व का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था, क्योंकि वह बेहद सामान्य कद-काठी के व्यक्ति थे। परंतु उनकी रचनाएं उनका एक अलग व्यक्तित्व प्रस्तुत करती थी। जिसके कारण लोगों के मन में उनकी अलग तरह की छवि थी। इसी कारण बंगाल के प्रसिद्ध साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ कहा। उन्होंने बताया कि प्रेमचंद ने स्वाधीनता के बाद के जिस परिवर्तित भारत का सपना देखा था। वह सपना आज भी पूरा नहीं हुआ। प्रेमचंद चाहते थे कि सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी भूखा न रहे। उसके पास इतनी संपति अवश्य हो कि वह अपना पेट भर सके। उन्होंने विद्यार्थियों से यह भी कहा कि अच्छे साहित्य पढ़कर, अच्छे व्यक्तित्व के विषय में जानकारी प्राप्त कर हमारा चरित्र सुदृढ़ हो सकता है। देश आज जिन समस्याओं का सामना कर रहा है, उनमें से अनेक के संकेत प्रेमचंद ने अपने साहित्य में लगभग 100 वर्ष पहले दे दिया था, तथा उनमें से कई समस्याओं का समाधान हमें प्रेमचंद के साहित्य से मिल सकता है।
कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापक श्री आशीष कौशिक ने आभार व्यक्त करते हुए बताया कि साहित्य किसी संकाय अथवा विषय विशेष की वस्तु नहीं है, वरन साहित्य सबके लिए है और वह हमारी भावनाओं को संवेदनशील बनाए रखता है। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक श्री बृजकिशोर त्रिपाठी, डॉ. प्रेमलता एक्का, श्रीमती शालिनी शांता कुजूर के साथ कार्यालयीन कर्मचारी श्री वीरेंद्र सिन्हा, श्री अशोक राजवाड़े, श्रीमती सुनीता गुप्ता, श्री दिनेश तथा श्री हेमंत के साथ 60 विद्यार्थियों ने भाग लिया।